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लड़कियों के साथ भेदभाव क्यों? Gender Equality

लड़कियों के साथ भेदभाव क्यों?


 लड़कियों के साथ भेदभाव भारतीय समाज में एक गहरी जड़ जमाए हुई समस्या है। यह भेदभाव विभिन्न रूपों में प्रकट होता है, चाहे वह शिक्षा, रोजगार, परिवार, या समाज में हो। इस मुद्दे की जड़ें समाज की पितृसत्तात्मक संरचना, परंपरागत धारणाओं, और रूढ़िवादी मानसिकता में गहरी हैं।

पितृसत्तात्मक समाज और पारंपरिक सोच
भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक सोच का बहुत बड़ा प्रभाव है। पितृसत्तात्मक समाज का अर्थ है एक ऐसा समाज जहां पुरुषों को महिलाओं पर श्रेष्ठ माना जाता है और उनके पास अधिक अधिकार होते हैं। इस सोच के कारण लड़कियों को कमतर समझा जाता है और उन्हें लड़कों से कम अवसर मिलते हैं। लड़कियों के लिए परिवार और समाज में यह धारणा बनाई जाती है कि उनकी प्राथमिक भूमिका घर और परिवार की देखभाल करना है। इस वजह से उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित रखा जाता है।

शिक्षा में भेदभाव
भारत में लड़कियों के साथ भेदभाव का एक प्रमुख रूप शिक्षा में देखने को मिलता है। कई परिवारों में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती है, क्योंकि उन्हें घरेलू कार्यों में मदद के लिए जरूरी माना जाता है। इसके अलावा, माता-पिता को यह डर होता है कि अधिक पढ़ाई करने से उनकी बेटी 'ज़्यादा आज़ाद' हो जाएगी, जो कि पारंपरिक समाज में अस्वीकार्य माना जाता है। परिणामस्वरूप, कई लड़कियों को छोटी उम्र में ही स्कूल छोड़ने पर मजबूर किया जाता है।

रोजगार में भेदभाव
लड़कियों के साथ भेदभाव का एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र रोजगार है। अगर वे पढ़ाई पूरी भी कर लें, तो भी उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम अवसर दिए जाते हैं। कई उद्योगों और क्षेत्रों में महिलाओं के काम करने को कमतर समझा जाता है, और उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। इसके अलावा, कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न और असुरक्षित माहौल के कारण भी लड़कियां अपने करियर में आगे नहीं बढ़ पातीं।

दहेज प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या
लड़कियों के साथ भेदभाव का एक और बुरा रूप दहेज प्रथा और कन्या भ्रूण हत्या है। भारत में दहेज प्रथा के चलते कई परिवार लड़कियों को बोझ मानते हैं। उन्हें लगता है कि बेटी के विवाह में उन्हें भारी दहेज देना पड़ेगा, जिसके कारण वे बेटी के जन्म को ही अभिशाप मानने लगते हैं। इस मानसिकता के चलते कन्या भ्रूण हत्या जैसी अमानवीय कृत्य होते हैं, जिसमें गर्भ में ही लड़की को मार दिया जाता है।

समाज और संस्कृति में बदलाव की आवश्यकता
लड़कियों के साथ भेदभाव की इस समस्या का समाधान तब तक संभव नहीं है जब तक समाज की मानसिकता में बदलाव नहीं आता। हमें यह समझना होगा कि लड़कियां और लड़के समान हैं और उन्हें समान अवसर मिलना चाहिए। इसके लिए शिक्षा, जागरूकता, और सरकारी नीतियों का सही क्रियान्वयन आवश्यक है।

सरकार द्वारा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन इनका सफल क्रियान्वयन तभी संभव है जब समाज के लोग अपनी सोच बदलें। लड़कियों के साथ भेदभाव को खत्म करने के लिए सबसे पहले हमें उन्हें समान अधिकार और सम्मान देना होगा। समाज में समानता की भावना का प्रसार करना और लड़कियों के लिए एक सुरक्षित और समर्थ वातावरण का निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है।

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 समाधान:

1. शिक्षा का प्रसार:

लड़कियों के साथ भेदभाव को समाप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका है शिक्षा का प्रसार। जब लड़कियां शिक्षित होंगी, तो वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी और समाज में अपनी पहचान बना सकेंगी


2. कानून का सख्त पालन:

सरकार द्वारा लड़कियों की सुरक्षा और समानता के लिए बनाए गए कानूनों का सख्त पालन होना चाहिए। चाहे वह कन्या भ्रूण हत्या का मामला हो या रोजगार में भेदभाव – इन मुद्दों को सख्ती से निपटाना होगा।

3. सामाजिक जागरूकता अभियान:

समाज में लड़कियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि लोग समझें कि लड़कियां भी लड़कों की तरह ही महत्वपूर्ण हैं और उन्हें समान अवसर मिलना चाहिए।

4. आर्थिक सशक्तिकरण:

लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें आर्थिक अवसरों से जोड़ना आवश्यक है। स्वरोजगार, शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों के जरिए उन्हें सशक्त बनाना चाहिए ताकि वे अपने फैसले खुद ले सकें।


निष्कर्ष

लड़कियों के साथ भेदभाव एक सामाजिक बुराई है, जिसे जड़ से समाप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। जब तक समाज में लड़कियों को समान अधिकार और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक महिला सशक्तिकरण का सपना अधूरा रहेगा। लड़कियों को भी लड़कों की तरह समान अवसर और अधिकार मिलना चाहिए, तभी हम एक समान और न्यायसंगत समाज की स्थापना कर सकते हैं।

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